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मौजे गुल, मौजे सबा, मौजे सहर लगती है / जाँ निसार अख़्तर

मौजे गुल, मौजे सबा, मौजे सहर लगती हैं
सर से पा' तक वो समाँ है कि नज़र लगती है

हमने हर गाम पे सजदों के जलाये हैं चराग़
अब तेरी राहगुज़र राहगुज़र लगती है

लम्हे-लम्हे में बसी है तेरी यादों की महक
आज की रात तो ख़ुशबू का सफ़र लगती है