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मौत / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा

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उम्र जब जाना शुरू करती है तो अकेले नहीं जाती
अपने साथ बहुत कुछ ले जाती है
पर जितना ले नहीं जाती उससे कहीं ज्य़ादा दे जाती है
जो ले जाती है, याद नहीं रहता
पर जो दे जाती है उसे भूला नहीं जा सकता
अकेलापन, उपेक्षा, अंधेरा, विवशता, अंतहीन इंतज़ार
यह जीते जी मौत है
इसे यूं भी कहा जा सकता है कि
जैसे जैसे उम्र ढलती जाती है
वैसे-वैसे मौत करीब और करीब आती जाती है

हम उसे महसूस कर रहे होते हैं और वह हमें
पर हम कुछ कर नहीं पाते
कभी-कभी ज़िन्दगी मौत के मुँह में ऐसे फँसकर रह जाती है
जैसे दहाड़ते हुए शेर के सामने धूजता हुआ हिरण