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मौसम ने कटवाया मौसम / देवेन्द्र आर्य
Kavita Kosh से
आया खुल के आया मौसम,
बादल बीच लुकाया मौसम ।
मुझको कहाँ थी इतनी फ़ुर्सत,
अधिये पर दे आया मौसम ।
बन के बेंट कुल्हाड़ी वाली,
मौसम ने कटवाया मौसम ।
और भला क्या देगा हमको,
धोखा, धोखा खाया मौसम ।
मैं भी कम थोड़े था, मैंने,
मौसम से सुलझाया मौसम ।
इसका भी कुछ ठीक नहीं है,
फिर साला झंटुआया मौसम ।
कारस्तानी आदम की थी,
मिटटी मोल बिकाया मौसम ।