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मौसम / देवेन्द्र आर्य
Kavita Kosh से
बूँद जपने लग गया मौसम ,
फिर टपकने लग गया मौसम ।
सर पे पल्लू की तरह आया ,
और सरकने लग गया मौसम ।
चिड़चिड़ी हो आई है धरती ,
जल्द थकने लग गया मौसम ।
फ्रीज में रखने से क्या होगा ,
जब महकने लग गया मौसम ।
माँ के बद्रीनाथ जाते ही,
घर में पकने लग गया मौसम ।
भून लो मन अपना भुट्टे-सा,
लो ,दहकने लग गया मौसम ।
आबरू की छोड़ के चिंता ,
पेट ढँकने लग गया मौसम ।