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यह हरामज़ादा शहर देख तूं / सांवर दइया
Kavita Kosh से
यह हरामज़ादा शहर देख तूं।
हवाओं में भरा ज़हर देख तूं।
भूल जा यहां हुआ था आदमी,
गिद्ध-लूट आठों पहर देख तूं।
देखना-सुनना-कहना सब मना,
सियासत ने किया क़हर देख तूं।
बेकार बदनाम थी रात यहां,
अपने घर काली शहर देख तूं!
कैसे होते हैं सपने हलाल,
देख सकता आज अगर देख तूं!