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याद रखना जो हुए घर से जो बेघर आँसू / कुमार अनिल
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याद रखना कि हुए घर से जो बेघर आँसू
तो जमीं को ही बना देंगे समंदर आँसू
कोई उम्मीद का पलकों पे नहीं जलता चिराग
आज क्या बैठ गए घर में ही थक कर आँसू
टूट कर आँख से हर हाल बिखरना था इन्हें
कब तलक लेते भला दर्द से टक्कर आँसू
आँख की स्याही ने रुखसारों पे लिक्खा है जिसे
प्यार की एक कहानी के हैं अक्षर आँसू
वो जो पूछेंगे कि क्या दर्द बहुत हैं दिल में
हम को चुप देख के दे जायेंगे उत्तर आँसू
आज फिर सोई है मजदूर की बिटिया भूखी
कह रहे उसके यही गाल पे जम कर आँसू
हमको जीवन की हकीकत हुई मालूम 'अनिल'
मिल गया मिट्टी में जब आँख से गिरकर आँसू