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और कब तक चुप रहें / कुमार अनिल
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और कब तक चुप रहें (ग़ज़ल-संग्रह)
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रचनाकार | कुमार अनिल |
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प्रकाशक | नवधा प्रकाशन |
वर्ष | 2005 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | (ग़ज़ल-संग्रह) |
विधा | |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- और कब तक चुप रहें (ग़ज़ल) / कुमार अनिल
- बने हुए हैं इस नगरी में / कुमार अनिल
- हर शख़्स है लुटा-लुटा / कुमारअनिल
- हर तरफ़ इक सनसनी है / कुमार अनिल
- मैं बनाने चला हूँ वो इक आशियाँ / कुमार अनिल
- बड़ा अजीब-सा मंज़र दिखाई देता है / कुमार अनिल
- ठहरा है झील का पानी तो उठा लो पत्थर / कुमार अनिल
- जितने भी लोग मुझे कल सरे बाज़ार मिले / कुमार अनिल
- वो शख़्स एक समंदर जो सबको लगता था / कुमार अनिल
- कौन किसको क्या बताए क्या हुआ / कुमार अनिल
- व्यक्ति का आचरण विषैला है / कुमार अनिल
- पत्थर बचे है एक भी शीशा नहीं बचा / कुमार अनिल
- घटा से चाँद की सूरत निकल रहा हूँ मैं / कुमार अनिल
- सरे शहर में एक भी तो घर बचा नहीं / कुमार अनिल
- निकल आए किधर हम बेख़ुदी में / कुमार अनिल
- मल्लाह बन के बैठे थे कल तक जो नाव में / कुमार अनिल
- कभी तो चेहरे से चेहरा हटा के बात करो / कुमार अनिल
- सिर्फ़ मेरा ही नहीं था ये शहर तेरा भी था / कुमार अनिल
- इस तरह तारीकियों के हल निकले जाएँगे / कुमार अनिल
- घाट मुर्दा है, गली मुर्दा है, घर मुर्दा है / कुमार अनिल
- कतरा रहें है आज कल पंछी उड़ान से / कुमार अनिल
- इस शहर में ये अज़ब यारो तमाशा देखा / कुमार अनिल
- जाने किसकी साजिश है ये / कुमार अनिल
- आऊँगा मै मेरी राहों को सजाए रखना / कुमार अनिल
- अपनी, ख़ुशियाँ अपने सपने सब के सब बेकार हुए / कुमार अनिल
- हिन्दू है कोई, कोई मुसलमान शहर में / कुमार अनिल
- दीवारों को घर समझा था / कुमार अनिल
- सबकी आँखों में झाँकता हूँ मै / कुमार अनिल
- महफ़िल में तनहा रहता हूँ / कुमार अनिल
- हर अनहोनी बात बदल दें / कुमार अनिल
- आज जो आपको सुनानी है / कुमार अनिल
- इतना छोटा क़द बच्चों का / कुमार अनिल
- जीवन की सुनसान डगर में / कुमार अनिल
- होटों को सच्चाई दे / कुमार अनिल
- मुद्दत से आँख नहीं झपकी / कुमार अनिल
- हम हैं हिन्दू मुसलमान बस / कुमार अनिल
- रात गुज़री है यूँ चराग़ों की / कुमार अनिल
- अब न किस्से छेड़ राजा रानियों के / कुमार अनिल
- प्रश्न सारे आज उत्तर माँगते हैं / कुमार अनिल
- वो बहुत बेज़ुबान है लेकिन / कुमार अनिल
- प्यार की पीर को समझता हूँ / कुमार अनिल
- हमारी आँख जो पुरनम नहीं है / कुमार अनिल
- वक़्त का तीर चल गया देखो / कुमार अनिल
- वो मेरी आँख में ख़ुशरंग ख़्वाब छोड़ गया / कुमार अनिल
- रहने दे ज़िद मत कर नाहक मान भी जा / कुमार अनिल
- पिंजरे से पंछी उड़ने में वक़्त नहीं लगता / कुमार अनिल
- झूठ, सच, नेकी, बदी सबका सिला मालूम है / कुमार अनिल
- याद रखना जो हुए घर से जो बेघर आँसू / कुमार अनिल
- गम की धूप , विरह के बादल, आँसू की बरसाते हैं / कुमार अनिल
- यहाँ हर आँख से सपना अलग है / कुमार अनिल
- शबे गम की सहर नहीं होती / कुमार अनिल
- दिल को यूँ मायूस नहीं कर रहने दे / कुमार अनिल
- प्यार के बंधन तुम्हारे जब से ढीले हो गए / कुमार अनिल
- नजरें न यूँ चुराओ की मौसम उदास है / कुमार अनिल
- तुम्हारा ग़म छुपाना आ गया है / कुमार अनिल
- तेरा मेरा इक रिश्ता है / कुमार अनिल
- और कुछ देर हँस हँसा लें चलो / कुमार अनिल
- प्रीतम चंदा से मिलने को आई थी बन दुल्हन शाम / कुमार अनिल
- पखेरू सपनो के सुन्दर उड़ा उड़ा के गया / कुमार अनिल
- हवा के झोकों में मद्धम-सी सरसराहट है / कुमार अनिल
- छिपा हुआ हो चंदा जो बादल में कुछ / कुमार अनिल
- आइनों का नगर देखते / कुमार अनिल
- वो जो हमसे बिछड़ने लगे / कुमार अनिल
- इस बरस होली का त्यौहार मनाएँ कैसे / कुमार अनिल
- जगमग-जगमग दीप जलाती आई एक दिवाली और / कुमार अनिल
- नए वर्ष की नई सुबह का स्वागत कर लें / कुमार अनिल
- आप खुशियाँ मनाएँ नए साल में / कुमार अनिल
- है जारी लूट हत्या का घिनौना सिलसिला अब तक / कुमार अनिल