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इस शहर में ये अज़ब यारो तमाशा देखा / कुमार अनिल
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इस शहर में ये अज़ब यारो तमाशा देखा
थी जरूरत जहाँ सूरज की कुहासा देखा
प्यास ही सिमटी हुई हमको दिखाई दी वहाँ
झाँक कर एक कुँए में जो जरा सा देखा
पीठ में घोंपते देखा था, छुरा रात जिन्हें
सुबह देते हुए उनको ही दिलासा देखा
कल तलक ज़र्द थे फूलों के ही चेहरे यारों
आज तो कलियों का भी रंग उड़ा सा देखा
रास्ता भूल के हम जाने कहाँ आ पहुँचे
जिसको भी देखा यहाँ पर तो लुटा सा देखा
दुनिया वालों ने तभी फेंकी है घर की कीचड़
जब भी दामन को 'अनिल' तेरा धुला सा देखा