भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरा मेरा इक रिश्ता है / कुमार अनिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरा मेरा इक रिश्ता है
मैं प्यासा हूँ, तू दरिया है

दुनिया मुझसे लाख खफा हो
तू ही अब मेरी दुनिया है

मैं हूँ जेठ की तपती धरती
तू रुत की पहली बरखा है

इस दीये की हिम्मत देखो
सूरज के आगे जलता है

याद तुम्हारी होगी शायद
घर आँगन महका महका है