भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नजरें न यूँ चुराओ की मौसम उदास है / कुमार अनिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नजरें न यूँ चुराओ कि मौसम उदास है
थोड़ा सा मुस्कुराओ कि मौसम उदास है

रूठी हुई है चाँदनी अपने ही चाँद से
आकर तुम्ही मनाओ कि मौसम उदास है

बैठे रहोगे हमसे भला दूर कब तलक
कुछ तो करीब आओ कि मौसम उदास है

उनके बदन की खुशबू चुरा लाओ आज फिर
ऐ शाम की हवाओं कि मौसम उदास है

सूरज हँसा तो रात की कालिख उतर गयी
तुम भी हँसो हँसाओ कि मौसम उदास है

कोई ग़ज़ल 'अनिल' की कहीं तनहा बैठ कर
चुपचाप गुनगुनाओ कि मौसम उदास है