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ये कहना था जो दुनिया कर रही है / हुमेरा 'राहत'
Kavita Kosh से
ये कहना था जो दुनिया कर रही है
ये गंगा कब से उल्टी बह रही है
ख़बर है ख़्वाब टूटेगा यक़ीनन
मगर इक फ़ाख़्ता दुख सह रही है
लगी थी उस की बुनियादों में दीमक
सो अब दिल की इमारत ढह रही है
कहीं ये ख़ुश्क हो जाए न साथी
मिरे दिल में जो नदिया बह रही है
सितारा बंद मुट्ठी में मिलेगा
मिरी तक़दीर मुझ से कह रही है
मिरे दिल के अकेले घर में ‘राहत’
उदासी जाने कब से कह रही है