ये धूप किनारा शाम ढले, 
मिलते हैं दोनो वक़्त जहाँ,
 
जो रात ना दिन, जो आज ना कल, 
पल भर को अमर, पल भर में धुआं
इस धूप किनारे पल दो पल
होठों कि लपक बाहों कि खनक 
ये मेल हमारा झूठ ना सच क्यों रार करें, 
क्यों दोष धरें किस कारण झूठी बात करें 
जब तेरी समंदर आंखों में 
इस शाम का सूरज डूबेगा
सुख सोयेंगे घर दर वाले
और राही अपनी राह लेगा