भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राजाभाई टॉवर / शरद कोकास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ पत्ते दोपहर की हवा में फुटपाथ पर उड़े
कसमसाने की एक आवाज़ गूँजी फिज़ा में
राजाभाई टॉवर की घड़ी ने पौने चार बजाए
एक दस्तक अतीत के बंद दरवाज़ों से सुनाई दी
इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के अहाते में
बीतेहुए पल आते जाते हुए दिखाई दिए

रेस्टोरेंट से आती कॉफ़ी की सोंधी महक ने
रक्त में फिर वही हलचल पैदा कर दी

दो पत्थरों के बीच फुटपाथ पर उगी
घास की एक पत्ती मुस्कराई
मेरी उम्र की तरह है तुम्हारा प्यार
चाहो तो इसे बचा लो
समय के क्रूर बूटों तले कुचले जाने से।

-2009