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रात के न्यून घण्टे / रोके दाल्तोन / राजेश चन्द्र
Kavita Kosh से
फ़रिश्तों पर मेरा यक़ीन नहीं है
लेकिन चन्द्रमा अब मर चुका है मेरे लिए ।
ख़त्म हो चुका है शराब का आख़िरी प्याला भी
जबकि मेरी प्यास कम नहीं हुई अभी ।
'ब्लू ग्रास’ भटक गया है अपने रास्ते से
अपने बादबानों से दूर जा रहा है वह ।
तितली अपना रंग पक्का कर रही है
आग पर, जो कि राख़ से बना है ।
सवेरा कुपित हो रहा है
ओसकणों और निस्तब्ध पक्षियों पर ।
अपनी नग्नता पर मुझे शर्म आ रही है
मैं असहाय हूँ किसी बच्चे की तरह ।
तुम्हारे हाथों के बग़ैर
मेरा यह दिल
मेरे ही सीने में मेरा दुश्मन है ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र