रामाज्ञा प्रश्न / द्वितीय सर्ग / सप्तक ४ / तुलसीदास
धीर बीर रघुबीर प्रिय सुमिरि समीर कुमारु।
अगम सुगम सब काज करु, करतल सिद्धि बिचारु॥१॥
धैर्यशाली वीर रघुनाथजीके प्रिय श्रीहनुमान्जीका स्मरण करके कठिन या सरल - जो भी कार्य करो, सबकी सफलता हाथमें आयी हुई समझो॥१॥
सुमिरि सत्रु सूदन चरन सुमंगल मानि।
परपुर बाद बिबाद जय जूझ जुआ जय जानि॥२॥
श्रीशत्रुघ्नजीके चरणोका स्मरण करो। यह शकुन मंगलप्रद मानो। दुसरेके नगरमें वाद विवादमें विजय तथा युद्ध और जुएमें भी विजय समझो॥२॥
सेवक सखा सुबंधु हित सगुन बिचारु बिसेषि।
भरत नाम गुनगन बिमल सुमिरि सत्य सब लेखि॥३॥
विशेषरूपसे सेवकों, मित्रों तथा अच्छे (अनुकूल) भाइयोंके लिये इस शकुनका विचार है। श्रीभरतजीके नाम तथा उनके निर्मल गुणोंका स्मरण करके सब (कार्य) सत्य (सफल) समझो॥३॥
साहिब समरथ सीलनिधि सेवत सुलभ सुजान।
राम सुमिरि सेइअ सुप्रभ, सगुन कहब कल्यान॥४॥
श्रीराम शक्ति-संपन्न, शील-निधान एवं परम सयाने स्वामी हैं; उनकी अत्यन्त सुलभ है। उन श्रीरामका स्मरण करके उत्तम स्वामीकी सेवा करो। इस शकुनकी (नौकरी आदिके लिये) हम मंगलमय कहेंगे॥४॥
सुकृत सील सोभा अवधि सीय सुमंगल खानि।
सुमिरि सगुन तिय धर्म हित कहब सुमंगल जानि॥५॥
श्रीजानकीजी पुण्य, शील और सौन्दर्यकी सीमा तथा मंगलकी खानी है; उनका स्मरण करो। इस शकुनको हम मंगलकारी जानकर स्त्रियोंके पातिव्रत धर्मके अनुकुल कहेंगे॥५॥
ललित लखन मूरति हृदयँ आनि धरें धनु बान।
करहु काज सुभ सगुन सब मुद मंगल कल्यान॥६॥
धनुष्य बाण लिये लक्ष्मणजीकी सुन्दर मूर्ति हृदयमें ले आकर कार्य करो। शकुन शूभ है। सब प्रकारसे आनन्दमंगल एवं कल्याण होगा॥६॥
राम नाम पर राम ते प्रीति प्रतीति भरोस।
सो तुलसी सुमिरत सकल सगुन सुमंगल कोस॥७॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि मेरा प्रेम, विश्वास और भरोसा श्रीरामसे अधिक राम नामपर है। उस (राम-नाम) का स्मरण करनेसे शकुन सभी सुमड्गलका कोष हो जाता है॥७॥