रामाज्ञा प्रश्न / द्वितीय सर्ग / सप्तक ५ / तुलसीदास
गुरु आयुस आये भरत निरखि नगर नर नारि।
सानुज सोचत पोच बिधि लोचन मोचत बारि॥१॥
गुरु (वसिष्ठ) की आज्ञासे भरतजी (ननिहाल से) लौट आये। अयोध्याके स्त्री पुरुषों (की दशा को देखकर छोटे भाई (शत्रुघ्न) के साथ वे सोचते हैं कि 'विधाता बडा़ नीच काम करनेवाला है' और नेत्रोसें आँसु बहाते हैं॥१॥
(प्रश्न-फल अशुभ है।)
भूप मरनु प्रभु बन गवनु सब बिधि अवध अनाथ।
रीवत समुझि कुमात कृत्त, मीजि हाथ धुनि माथ॥२॥
महाराज दशरथकी मृत्यु, प्रभु, श्रीरामका वन जाना तथा सब प्रकारसे अयोध्याका अनाथ होना-इन सबको दुष्टहृदया माता ( कैकेयी ) की करतूत समझकर वे हाथ मलते और सिर पीटकर रोते हैं॥२॥
(प्रश्ना फल निकृष्ट है।)
बेदबिहित पितु करम करि, लिये संग सब लोग।
चले चित्रकूटहि भरत ब्याकुल राम बियोग॥३॥
वैदिक विधिसे पिताका अन्त्येष्टि-कर्म करके भरतजीने सब लोगोंको साथ ले लिया और श्रीरामके वियोगमें व्याकुल होकर वे चित्रकूटको चल पड़े॥३॥
राम दरस हियँ हरषु बड़ भूपति मरन बिषादु।
सोचत सकल समान सुनि राम भरत संबादु॥४॥
श्रीरामके दर्शनसे ( सबके ) हृदयमें बडी़ प्रसन्नता है, (साथ ही) महाराज दशरथकी मृत्युका दुःख (भी) है। अब श्रीराम तथा भरतका परस्पर वार्तालाप सुनकर समस्त समाज चिन्ता करने लगा है॥४॥
( प्रश्नन फल असफलता तथा दुःखसूचक है। )
सुनि सिख आसिष पाँवरी पाइ नाइ पद माथ।
चले अवध संताप बस बिकल लोग सब साथ॥५॥
( प्रभुकी ) शिक्षा सुनकर, आशीर्वाद तथा चरण पादुका पाकर एवं उनके चरणींमें मस्तक झुकाकर सन्तापवश ( दुःखित चित्त ) भरत अयोध्या चले साथके सभी लोग व्याकुल हैं॥५॥
( प्रश्नी फल अशुभ है॥ )
भरत नेम ब्रत धरम सुभ राम चरन अनुराग।
सगुन समुझि साहस करिय, सिद्ध होइ जप जाग॥६॥
श्रीभरतजीके शुभ नियम व्रत, धर्माचरण तथा श्रीरामके चरणोंमें प्रेमको उत्तम शकुन समझकर साहसपूर्वक ( कार्य प्रारम्भ ) करो; इससे जप और यज्ञ सिद्ध ( सफल ) होंगे॥६॥
चित्रकुट सब दीन बसत प्रभु सिय लखन समेत।
राम नाम जप जापकहि तुलसी अभिमत देत॥७॥
प्रभु श्रीराम श्रीजानकीजी तथा॥ लक्ष्मणजीके साथ सर्वदा चित्रकूटमें निवास करतें हैं। तुलसीदासजी कहते हैं की श्रीराम नामका जप जापकको अभीष्ट फल देता है॥७॥
(जप आदि साधन सफल होंगे।)