रामाज्ञा प्रश्न / षष्ठम सर्ग / सप्तक ५ / तुलसीदास
बिप्र एक बालक मृतक राखेउ राम दुआर।
दंपति बिलपत सोक अति आरत करत पुकार॥१॥
एक ब्राह्मण (तथा उसकी स्त्री) ने अपना मरा बालक लाकर श्रीरामके द्वारपर रख दिया। पति-पत्नी शोकसे अत्यन्त दुःखी होकर विलाप करते हुए पुकार कर रहे थे॥१॥
(प्रश्न-फल अशुभ है।)
राम सोच संकोच बस सचिव बिकल संताप।
बालक मीचु अकाल भइस राम राज केहि पाप॥२॥
श्रीरामजी संकोचके कारण चिन्तामें पड़ गये, मन्त्री दुःखसे व्याकुल हो गये कि श्रीरामके राज्यमें किसके पापसे बालककी असमयमें मृत्यु हुई॥२॥
(प्रश्नय-फल निकृष्ट है।)
बिबुध बिमल बानी गगन, हेतु प्रजा अपचारु।
राम राज परिनाम भल कीजिय बेगि बिचारु॥३॥
(उसी समय) आकाशसे निर्मल (स्पष्ट) देववाणी हुई कि इसका कारण प्रजाके किसी व्यक्तिका दूषित आचरण है। शीघ्र विचार कीजिये। ' राम-राज्यमें परिणाम तो उत्तम ही होगा '॥३॥
(चिन्ता दूर होगी।)
कोसल पाल कृपाल चित बालक दीन्ह जिआइ।
सगुन कुसल कल्यान सुभ, रोगी उठै नहाइ॥४॥
दयालुहृदय श्रीकोसलनाथ रघुनाथजीने (ब्राह्मणके) बालकको जीवित कर दिया। यह शकुन शुभ है, कुशल एवं कल्याणका सूचक है। रोगी नहाकर उठ खडा़ होगा॥४॥
बालकु जिया बिलोकि सब कहत उठा जनु सोइ।
सोच बिमोचन सगुन सुभ, राम कृपाँ भल होइ॥५॥
(ब्राह्मणके) बालकको जीवित हो उठा देख सब कहने लगे - मानो यह सोकर उठा है।' यह शुभ शकुन सोचको दूर करनेवाला है, श्रीरामकी कृपासे भलाई होगी॥५॥
सिला सुतिया भइम गिरि तरे मृतक जिए जग जान।
राम अनुग्रहँ सगुन सुभ, सुलभ सकल कल्यान॥६॥
श्रीरामकी कृपासे पत्थर (अहल्या) सुन्दरी स्त्री हो गयी, पर्वत (समुद्रपर) तैरने लगे और मृतक (बालक) जी उठा-यह संसार जानता है। यह शकुन शुभ है, सभी कल्याण सरलतासे प्राप्त होंगे॥६॥
केवट निसिचर बिहँग मृग किए साधु सनमानि।
तुलसी रघुबन की कृपा सगुन सुमंमगल खानि॥७॥
केवट (निषादराज गृह) राक्षस (विभीषण), पक्षी (जटायु) एवं पशुओं (वानरों) को श्रीरघुनाथजीने कृपा करके आदर देकर सप्तपुरुष बना दिया। तुलसीदासजी कहते हैं कि यह शकुन उत्तम मंगलोंकी खान है॥७॥