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रामाज्ञा प्रश्न / षष्ठम सर्ग / सप्तक ६ / तुलसीदास

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राम राज राजत सकल धरम निरत नर नारि।
राग न रोष न दोष , सुलभ पदारथ चारि॥१॥
श्रीरामके राज्यमें सभी स्त्री-पुरुष धर्माचरणमें लगे हुए शोभित हैं। राग (भोगासक्ति), क्रोध, दोष (कामादि) और दुःख (किसीको) नहीं है; (सबको) चारों पदार्थ (अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष) सुलभ है॥१॥
(प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)

खग उलूक * झगरत गए अवध जहाँ रघुराउ।
नीक सगुन बिबरिहि झगर, होइहि धरम निआउ॥२॥
गीध पक्षी और उल्लु झगडा़ करते हुए अयोध्यामें श्रीरघुनाथजीके पास गये १। यह शकुन अच्छा है, झगडा़ सुलझ जायगा, धर्मपूर्वक न्याय होगा॥२॥

जती-स्नान* संबाद सुनि सगुन कहब जियँ जानि।
हंस बंस अवतंस पुर बिलग होत पय पानि॥३॥
यति (संन्यासी) और कुत्तेका संवाद सुनकर २ अपने चित्तमें समझकर शकुन बताऊँगा कि सूर्यवंशभूषण श्रीरघुनाथजीके नगर (अयोध्या) में दूध-पानी पृथक होता (सच्चा न्याय प्राप्त होता) है॥३॥
(विवादमें सत्यकी विजय होगी।)

राम कुचरचा करहिं सब सीतहि लाइ कलंका।
सदा अभागी लोग जग, कहत सकोचु न संक॥४॥
लोग श्रीजानकीजीको कलंक लगाकर श्रीरामकी निन्दा करते हैं। जगत्के लोग सदासे अभागे हैं, (ऐसी बात) कहते उन्हें संकोच और शंका भी नहीं होती॥४॥
(अपयश होगा)

सती सिरोमनी सीय तजि, राखि लोग रुचि राम।
सहे दुसह दुख सगुन गत प्रिय बियोगु परिनाम॥५॥
श्रीरामने सती-शिरोमणि श्रीजानकीजीका त्याग करके लोगोंकी रुचि रखी और स्वयं असहनीय दुःख सहा। इस अपशकुनका फल परिणाममें प्रियजनका वियोग है॥५॥

बरन धरम आश्रम धरम निरत सुखी सब लोग।
राम राज मंगल सगुन, सुफल जाग जप जोग॥६॥
श्रीरामके राज्यमें सब लोग अपने वर्ण-धर्म और आश्रम-धर्ममें लगे हुए है, अतएव सुखी हैं। यह शकुन मंगलसूचक है; यज्ञ जप और योग सफल होगा॥६॥

बाजिमेध अगनित किए, दिए दान बहु भाँति।
तुलसी राजा राम जग सगुन सुमंगल पाँति॥७॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि महाराज श्रीरामने अगणित अश्वमेधयज्ञ किये और अनेक प्रकारसे दान दिये। संसारमें यह शकुन श्रेष्ठ मंगलोंकी परम्पराका द्योतक है॥७॥

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  • १. किसी वनमें रहनेवाले गीध और उल्लु एक वृक्षके खोड़रके लिये झगड़ पडे़। दोनों उसे अपना घर बतलाते थे। निर्णय करानेके लिये दोनों अयोध्या आये। रघुनाथजीके पूछनेपर गीधने कहा-'सृष्टिके प्ररम्भमें पृथ्वीपर जबसे मनुष्य बसने लगे, तबसे यह खोड़र मेरे अधिकारमें चला आया है।

उल्लुने बताया-'प्रभो! पृथ्वीपर जबसे वृक्षोंकी उत्पत्ति हुइ तबसे मैं उसमें रहता हूँ।
दोनोंकी बात श्रीरघुनाथजीने उल्लुको वह खोड़र दिला दिया।)

  • २. श्रीरामके दरबारमें एक बार एक कृत्ता पहुँचा। उसने कहा-'मुझे सर्वाथिसिद्धि नामक ब्राह्मणने निरपराध मारा है।' ब्राह्मण बुलाया गया उसने अपराध स्वीकार कर लिया। वह दरिद्र था, भिक्षा न मिलनेसे भुखा था, क्षुधाकी झुँझलाहटमें उसने कुत्तेकी अकारण मारा था। कुत्तेने ही उसके लिये दण्ड चुना कि 'ब्राह्मण कालंजरके मठका मठाधीश बना किया जाय।' ब्राह्मण मठाधीश बना दिया गया। पूछनेपर कुत्तेने बताया-'मैं पूर्वजन्ममें वहींका मठाधीश था, अत्यन्त सावधानीसे आचरण करता था; किन्तु भूलसे देवांश खा लेनेके कारण मेरी यह गति हुई। यह ब्राह्मण मठाधीश होकर प्रमाद करेगा तो नरकमें ही जायगा।'