राम-लखन नृप-सुअन दोउ राजत कौसिक संग।
रूप-सुधा-सौंदर्य-निधि उमगत अंग सुअंग॥
दामिनि-बारिद-बर-वरन, तेज-पुंज रस-रंग।
नख-सिख सुंदर निरखि छबि मोहे अमित अनंग॥
धनु-सर कर, केहरि-ठवनि, कटि पटपीत-निषंग।
मुनि मख-राखन, भय-हरन, बिरमत सदा असंग।
बिकट कुटिल मारीच मति नीच सुबाहु भुअंग॥
उभय जीति, मुनि जग्य कौं सफल कर्यो सब अंग॥