रासलीला के पात्र बच्चें / लक्ष्मीकान्त मुकुल
मथुरा-वृंदावन के गांवों से आए
रासलीला में अभिनय करते बच्चे
आम फहम की तरह नहीं लगते कहीं से
दर्शक उन्हें विस्तारित नेत्रों से देखते हैं मंत्रमुग्ध होते हुए
चेहरे पर मुस्कान फैलाएँ अलौकिक का भाव बिखेरते दिखते हैं वे अक्सर
पता नहीं वह कभी पाठशाला गए होंगे या नहीं
क्या भाषा विन्यास को समझा होगा
बीज गणितीय सूत्रों को हल किया होगा कि नहीं तकनीक में रोज आ रहे बदलावों को बुझा होगा या नहीं
ग्वाल-बालों का रूप धरे चरवाहे भी वह नहीं लगते जो दौड़ते हैं पगहा थामे आर-पगार
खेलने-कूदने की उम्र में ये बच्चे
मां के आंचल पिता के साये से सैकड़ों मील दूर
हंसते-खेलते कैसे मिल कर लेते हैं नृत्य लीला
कृष्ण-बलराम का बाना बनाए बच्चों को
क्या घर के बिछोह का दर्द नहीं सताता होगा?
घर के पिछवाड़े में फला अमरूद
आंगन में लदराया तुत
स्कूल के रास्ते के मकोह
सिवान के रास्ते पर खड़ा बेर
दरवाजे पर बंधी मिमियाती बकरियाँ
खूंटे पर चिकरती बाछी
क्या खींचते नहीं होंगे उनके दिलों के तार?
नियम-कानून की पोथियों की धज्जियाँ उड़ाते
कौन खींच लाया है इन अबोध बालकों को
पुरायुगीन
नायक पात्रों का अभिनय करने के लिए
राधा-कृष्ण बने बच्चों को दिला सकते हो
तुम कभी भी न्याय का दिलासा
जिनके आगे लगकर माथा टेक रही है
दर्शकों की उल्लसित भीड़...!