भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रिटायरमेंट के बाद बना मकान / शरद कोकास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घने होते शहर में
चिड़िया ने देखा
घोंसले का स्वप्न
पिता ने जुटाई थोड़ी सी पूँजी
तिनका तिनका हिम्मत
उम्मीदों की नींव पर
बन गया एक मकान
रिटायरमेंट के बाद

छत ढलने से पहले ही
ढलने लगे थे स्वप्न
यहाँ बिराजेंगे देवता
यहाँ महकेगी रसोई
यहाँ खिलेगा गुलमोहर
यहाँ बसेंगे बहू-बेटे

दीवार नहीं थे बच्चे
जिनसे पिता चाहते थे सुरक्षा
छत भी नहीं थे बच्चे
जिनसे बुढ़ापे में छाँव की अपेक्षा
बूढ़े पिता नहीं जानते थे
बच्चे दीवार और छत की तरह
एक जगह टिके नहीं रहते
बच्चे पक्षियों की तरह बढ़ते हैं
पर फैलाते हैं
एक दिन उड़ जाते हैं
दाने-पानी की खोज में

आंगन में अकेले बैठे पिता
सुनते हैं
परदेस जाते बेटे के कदमों की आवाज़
झाड़ते हैं
बिटिया के गुड्डे-गुड़ियों पर जमी धूल
बन्द पड़े सूने कमरे की ओर ताकते हुए
वे याद करते हैं
किराये के छोटे से मकान में बिताए
चहल पहल भरे दिन।

-1994