भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोते-हँसते / कुंवर नारायण
Kavita Kosh से
जैसे बेबात हँसी आ जाती है
हँसते चेहरों को देख कर
जैसे अनायास आँसू आ जाते हैं
रोते चेहरों को देख कर
हँसी और रोने के बीच
काश, कुछ ऐसा होता रिश्ता
कि रोते-रोते हँसी आ जाती
जैसे हँसते-हँसते आँसू !