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लाँघ कर सिवाने / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
एक लतर सपने की
आतुर आधार के लिए
मन के संसार के लिए
जैसे रोगी सूने गाँव में पुकारे
साधे हो साँस
किसी नाम के सहारे
वैसे ही एक उमर पुतलियाँ उघारे
आकुल उपचार के लिए
छाया तक साथ नहीं बैठी सिरहाने
केवल कीं नंगी
अखेलियाँ हवा ने
एक लचर मृग-तृष्ण लाँघ कर सिवाने
प्यासी आकार के लिए