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लाई बहार शौक़ के सामाँ नए नए / 'मुमताज़' मीरज़ा

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लाई बहार शौक़ के सामाँ नए नए
दुनिया नई नई सी दिल ओ जाँ नए नए

साक़ी की इक निगाह ने बख़्शी हयात-ए-नौ
दिल में मचल गए मेरे अरमाँ नए नए

हर आन तर्ज़-ए-नौ ने सताए है आसमाँ
मेरे लिए सितम के हैं उनवाँ नए नए

बर्बादियों का अपने नशेगन की ग़म नहीं
तामीर हो रहे हैं गुलिस्ताँ नए नए

फ़स्ल-ए-बहार आई मुबारक हो ऐ जुनूँ
दामन नए नए हैं गिरबाँ नए नए

उस चश्म-ए-नीम-बाज़ की वो कम निगाहियाँ
दिल में उतर गए मेरे पैकाँ नए नए

मस्जिद में भी फ़साना बुतों का जनाब-ए-शैख़
शायद हुए हैं आप मुसलमाँ नए नए

‘मुमताज’ इक चराग़-ए-सर-ए-रह-गुज़र सही
होंगे चिराग़ उस से फ़रोजाँ नए नए