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लाल-लाल कहक, किसने मुझे बोल दी / दयाचंद मायना
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लाल-लाल कहके, किसने मुझे बोल दी
सोया हुआ था, आँख मेरी खोल दी...टेक
आवै कैसे नींद यार, धन, धरती के पाली नै
हाम कैसे सुनते रहंगे, रोज धी-बेटी की गाली नै
पापण फौज चीन आली नै, करड़ी आखर तोल दी...
मै सन्दका-सन्दकी हाथ पकड़कै, भारत माँ नै ठाया
वा कहणे लगी कुर्बानी का मौका ठीक बताया
देश धर्म की खातिर काया, देह मनैं बिन मोल दी...
हो हार हमेशा उस की, पहलम छेड़ करी जिसनै
बार-बार स्वीकार चीन, तेरे देखैंगे जंग इसनै
जहर बराबर पूड़िया किसन, अमृत से मैं घोल दी...
उस ठाडे नै हरा दे, हीणै-नै जिता ‘दयाचन्द’
उस प्रभु की परम गति का, किसनै पता ‘दयाचन्द’
सन 62 की कथा ‘दयाचन्द’ न्यारी छांट निरोल दी...