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ले मान सजन मेरी बात / दयाचंद मायना

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ले मान सजन मेरी बात, जंग में रही रहूंगी...टेक

जुणसी रूख नै तु चालोगे, मैं भी तेरे गैल जांगी
पैसेन्जर ना रहूं ईब तै, छूट डाक और मेल जांगी
चीते कैसी जंप चौकड़ी, हेरण कैसी पेल जांगी
नेफा आली बांट सफर नै, पीछे नै धकेल जांगी
जो कुछ आफत पड़ै आप पै, आपणे तन पै झेल जांगी
पतिव्रता का कहण सचमुच, ज्यान ऊपर खेल जांगी
मैं छुपा जनाना गात, मर्द के ढंग म्हं रही रहूंगी...

एक मिनट भी न्यारे हो ना, जिनका सच्चा प्यार हो सैं
हृदय क मैं हरदम सैन्दक, चश्म से दीदार हो सैं
पतिव्रता के राम, ईश्वर, ब्याही के भरतार हों सैं
बीर मर्द के लाम्बे चोड़े, कोल और करार हों सैं
मरण-जीण के साथी दोनूं, जीवन भर के यार हों सैं
गोकुल के गवाल कृष्ण, मीरा के मुरार हों सैं
लेकै इकतारा हाथ, पति हर रंग म्हं रही रहूंगी...

मैं भी चालूं जहाँ-जहाँ, बहादुरों की देख हो सै
मारण वाले लाख वहाँ, बचाणिया एक हो सै
बन्दे कै के हाथ बात, कुदरती ही लेख हो सै
बल्लम-भाले, बैन्ट, बरछी, छाती के मैं छेख हो सै,
भीगे रहे खून में कपड़े, जोगी कैसा भेख हो सै
दिन म्हं रात दिखाई दे, जब टेंका का अटैक हो सै
जहां फैर चलै दिन-रात, फिर भी संग म्हं रहूंगी...

रमा हुआ राम सारै, हाड़, मांस, चाम म्हं सै
सूर्य का प्रकाश देखले, सृष्टी तमाम म्हं सै
वो ए याड़ै, वो ए ऊड़ै, चीन की लाम म्हं सै
गुण सिखे तै चाल ‘दयाचन्द’, सतगुरु सांकोल गाम म्हं सै
मांगे से मिलैगा उसकै घाटा के गोदाम म्हं सै
भले मनुष्य की जीत हमेशा, फतह गुरु का नाम म्हं सै
वहाँ सभी मनुष्य एक जात, इसे सरभंग म्हं रही रहूंगी...