लोकल ट्रेन / शरद कोकास
वह गायों और मनुष्यों के घर लौटने का वक़्त था
बहुत ज़्यादा फ़र्क नहीं था
उस भीड़ और घर लौटते पशुओं के रेवड़ में
कामकाजी माँओं को चिंता थी बच्चों की
पिता एक दिन गुज़र जाने के सुख से लबालब थे
बच्चों के लौटने का वक़्त नहीं हुआ था अभी
फिर भी सब घर पहुँचकर सुरक्षित हो जाना चाहते थे
अपनी छोटी-छोटी दुनियाओं में
ऐसे में तुम सवार हुई लोकल ट्रेन में
एक हाथ में कॉफ़ी का मग
और दूसरे हाथ में सेंडविच लिए
अपनी पेंसिल हील सैंडिल की धुरी पर
घूमती हुई पृथ्वी सा संतुलन संभाले
अद्भुत हो सकता है यह दृश्य
मुम्बई से बाहर रहने वालों के लिए
वे और अचरज से भर जाएंगे
जब वे देखेंगे तुम्हें
अलग-अलग हाथों में
कलश, कमल, धन का पात्र लिए लक्ष्मी की तरह
छत्री, अखबार, पर्स, कैरीबैग और भाजी का झोला लिए।
-2009