भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लौट गया उलटे पाँव / शरद कोकास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो डरते डरते शहर में बस गए
वे गाँवों से आए थे
मजबूरियाँ उन्हें खींच लाई थीं
वे गाँव साथ लेकर आए थे

शहर की बस्तियों ने उन्हें बेदख़ल नहीं किया
सड़कों ने मंज़िलों को नहीं किया गुम
टहलने से नहीं रोका बाग़ीचों ने
बाज़ारों ने जेब नहीं काटी
खंजर नहीं भोंका दोस्तों ने पीठ में
प्रेमिकाओं ने बेवफाई नहीं की

रिश्तेदारों ने लानतें नहीं भेजीं
मालिकों ने पेट पर लात नहीं मारी
नहीं उछाला नाम अख़बारों ने

शहर ने पूरी पूरी कोशिश की शरू-शुरू में
उनके कन्धों पर हाथ रखने की

मगर उन्होंने हाथ को सड़क पार करवाई
फैले हाथों पर
अपनी मेहनत का कुछ अंश रखा
बच्चों को दुलराया खिलौने दिए
पड़ोसियों से हाल पूछे
एक कटोरी सब्ज़ी उनके घर पहँुचाई

शहर फिर आया
अपनी तमाम बुराइयाँ लिए
उन्हें निगल जाने को
उन्होंने शहर के पाँव पखारे
न्योता दिया
हमदर्दी जताई
गाँव की बातें कीं
देहरी से लौट गया शहर उलटे पाँव।

-1997