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वक्त रुका कब मत मानव तू आलस कर / रंजना वर्मा

वक्त रुका कब मत मानव तू आलस कर।
जीवन पथ पर चले निरन्तर साहस कर॥

श्याम साँवरे हे मनमोहन गिरधर आ
मेरे जीवन को मधुसूदन मधुरस कर॥

मोहन तन मन की क्या चिंता हो मुझ को
रात चाँदनी से भर जगमग मावस कर॥

साहस के कर कर्म हमेशा मत डर तू
सदा निडर रह मत खुद को यूँ बेबस कर॥

धूल धूसरित पाँव हो गये हैं घायल
इतना तो दुख सहा न जाये अब बस कर॥

बीच भँवर में नाव अकेली साथ नहीं
बहुत थके हैं अब मत जीवन नीरस कर॥

कलुषित पापों से है मेरा ये तन मन
छू कर इसको पत्थर मन का पारस कर॥