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वचन हारने लगो / आत्म-रति तेरे लिये / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

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वचन हारने लगो, याद जय के क्षण कर लेना!
सामने दर्पण धर लेना!

ताजमहल की सेजों पर हम-तुम थे शीश धरे,
और, दृगों में थे यमुना का निर्मल नीर भरे,
संकल्पों में बंधें याद वे बन्धन कर लेना!
सामने दर्पण धर लेना!

चिश्ती के मज़ार पर बांधे साथ-साथ धागे,
सदा साथ रहने-वाले दिन हाथ जोड़ माँगे,
किया हर्ष में दान, याद वह कंगन कर लेना!
सामने दर्पण धर लेना!

मन-कामेश्वर के मन्दिर में ज्योतित दीप किये,
मुखर व्रतों को दीप्त शिखाओं में आशीष दिये,
स्वप्न, सत्य-सा दिखा याद वह दर्शन कर लेना!
सामने दर्पण धर लेना!