Last modified on 30 मई 2023, at 19:44

वसन्त का एक दिन : दोपहर के चार बजे / वीत्येज़स्लव नेज़्वल / शारका लित्विन

एक

मैंने पढ़ी कहानी
नाम भूल चुका हूँ
लकड़ी की मेज़ याद में बची रही आँगन में
आज लौटते हैं अनाम नगर और छुट्टियाँ
कॉफ़ी-हाउस के बरामदे पर

गुज़र रही हैं कोयले से लदी घोड़ागाड़ियाँ
स्ट्राबेरी के जंगल में मटकी लुढ़की हुई है
और माँ की आवाज़ सुनाई दे रही है
वह मुझे दोपहर में खाना खाने के लिए बुला रही है
औरतों से अँग्रेज़ी सिगरेट के धुएँ की ख़ुशबू आ रही है

यह निरन्तर मैं ही हूँ
भूली हुई कहानी का लड़का
डूबते सूरत की आख़िरी किरण से
सुलग गई सड़क को
बड़ी उत्तेजना से देख रहा हूँ ।

दो

नीली टोपियों के जंगल में
टोपी में भरकर
अफ़्रीकी लड़का पी रहा है जल
फ़व्वारे से उठाकर
जिसमें पत्तियाँ गिरी हुई हैं
पेड़ से झड़कर ।

तीन

कविता लिखने का मतलब
जीवन से भागना नहीं है
उतनी देर के लिए भी नहीं
जितनी देर के लिए
इक-दूजे को चूमते हुए हम
जीवन से भागते हैं

एक जीवन के बदले मैं दूसरा देता हूँ
जैसे एक दूरबीन में दो चित्र
हस्ताक्षर घसीटने की तरह हाथ हिलाते हुए ।

चार

जीना और बादलों को ताकना
इसे हम सपना देखना कहते हैं
मैं ऐसी दुनिया चाहता हूँ, जिसमें
बच्चे तक के लिए मैं बाधा न रहूँ ।

पाँच

स्वभावतः सदाशयता और अच्छाई चाहते हुए
ऐ क्रान्ति !
मैं गर्व से तुम्हें बुलाता हूँ ।

छह

दुनिया बदल जाएगी
पर आदमी उदास रहेगा
जब तक वो अपने भीतर
अच्छे दोस्त को नहीं ढूँढ़ लेगा

उदास रहेगा वह तब तक
जब तक नहीं खोज लेगा
किसी सनेही सहेली को

जब तक अपने अन्दर कवि
किसी बच्चे को नहीं ढूँढ़ लेगा ।

मूल चेक भाषा से अनुवाद : शारका लित्विन