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वह दिन तुम्हें याद है प्राण? / रामगोपाल 'रुद्र'
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सजल श्याम बदली छाई थी,
एक नई आशा लाई थी,
हम दोनों ने पास-पास से
दोनों की झाँकी पाई थी;
सहम-सहम सिहरी-सी मारुत,
दूती-सी चलती धीमे-द्रुत,
हमें मिलाने को आई थी;
चातक ने खुलकर गाए थे, उस दिन अपने गान!
क्षुब्ध न हो धरणी, इस डर से,
भानु नहीं निकले थे घर से;
स्वाती चाह रही थी, उसका
व्रती और अब अधिक न तरसे;
रिमझिम-रिमझिम जल के सीकर
बरस रहे थे, घर भू का भर;
नीरस ताल-सरोवर सरसे;
पावस की रानी आई थी, धर धानी परिधान!