भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वार्ता:समझेगा कौन हमको इतना ज़रा बता दो / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
Kavita Kosh से
समझेगा कौन हमको इतना ज़रा बता दो किस बात पे हैरां हो इतना ज़रा बता दो
देखा है जब से तुमको दिल तुम पे आ गया है जाएं तो किस जहां को इतना ज़रा बता दो
हमसे ख़फ़ा न होंगे वादा किया था तुमने ख़ामोश क्यूं हुए हो इतना ज़रा बता दो
कहना है जितना आसां मुश्किल है क्य़ूं निभाना हम पूछते हैं तुमको इतना ज़रा बता दो
ख़ामोश हैं निगाहें गुमसुम सी क्यूं तुम्हारी "आज़र" ज़रा सा ठहरो, इतना ज़रा बता दो </nowiki>