भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विचार हत्या / शरद कोकास
Kavita Kosh से
वे मुझे बदनाम करना चाहते थे
मेरे विचारों केक विरुद्ध
यह एक ऐसा षड्यंत्र था
जो उन्होंने खेल खेल में रचा था
प्रवचनों की पृष्ठभूमि में
नैतिकता को परिभाषित करते हुए
उन्होंने सोचा
यह गया तो सब कुछ गया
उनकी मंशा थी
मैं उनकी ध्वजा तले आ जाऊँ
उनकी राज मुद्रा अपने माथे पर लगा लूँ
उनके चरणों में शीश नवाऊँ
स्वीकार करूँ उनकी परमसत्ता
उनके बस में नहीं था
मेरी भरी पूरी देह को आघात पहुँचाना
उनके बस में नहीं था
मेरे हितैषियों को ख़ारिज कर देना
और मेरे जीवन से खिलवाड़ कर उसे नष्ट कर देना
दरअसल वे ऐसा चाहते भी नहीं थे
पता नहीं कौन उन्हें यह अक्ल दे गया
विचारों की हत्या भी आदमी की हत्या है।