भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} :::रात की हर साँस करती है प्रती…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
:::रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा-
:::द्वार कोई खटखटाएगा!
दिवस का अब मुझ पर नहीं अब
कर्ज़ बाकी रह गया है,
जगत के प्रति भी न कोई
फर्ज़ बाक़ी रह गया है,
::जा चुका जाना जहाँ था,
::आ चुके आना जिन्हें था,
:::इस उदासी के अँधेरे में बता, मन,
:::कौन आकर मुसकराएगा?
:::रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा-
:::द्वार कोई खटखटाएगा!
'वह की जो अंदर स्वयं ही
आ सकेगा खोल ताला,
वह, भरेगा हास जिसका
दूर कानों में उजला,
::वह कि जो इस ज़िन्दगी की
::चीख़ और पुकार को भी
:::एक रसमय रागिनी का रूप दे दे
:::एक ऐसा गीत गाएगा।'
:::रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा-
:::द्वार कोई खटखटाएगा!
मौन पर मैं ध्यान इतना
दे चुका हूँ बोलता-सा
पुतलियाँ दो खोलता-सा,
::लाल, इतना घूरता मैं
::एकटक उसको रहा हूँ,
:::पर कहाँ स्रगी है वह, ज्योति है वह
:::जो कि अपने साथ लाएगा?
:::रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा-
:::द्वार कोई खटखटाएगा!
और बारंबार मैं बलि-
हार उसपर जो न आया,
औ' न आने का समय-दिन
ही कभी जिसने बताया,
::और आधी ज़िदगी भी
::कट गई जिसको परखते,
:::किंतु उठ पाता नहीं विश्वास मन से-
:::वह कभी चुपचाप आएगा।
:::रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा-
:::द्वार कोई खटखटाएगा!
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
:::रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा-
:::द्वार कोई खटखटाएगा!
दिवस का अब मुझ पर नहीं अब
कर्ज़ बाकी रह गया है,
जगत के प्रति भी न कोई
फर्ज़ बाक़ी रह गया है,
::जा चुका जाना जहाँ था,
::आ चुके आना जिन्हें था,
:::इस उदासी के अँधेरे में बता, मन,
:::कौन आकर मुसकराएगा?
:::रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा-
:::द्वार कोई खटखटाएगा!
'वह की जो अंदर स्वयं ही
आ सकेगा खोल ताला,
वह, भरेगा हास जिसका
दूर कानों में उजला,
::वह कि जो इस ज़िन्दगी की
::चीख़ और पुकार को भी
:::एक रसमय रागिनी का रूप दे दे
:::एक ऐसा गीत गाएगा।'
:::रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा-
:::द्वार कोई खटखटाएगा!
मौन पर मैं ध्यान इतना
दे चुका हूँ बोलता-सा
पुतलियाँ दो खोलता-सा,
::लाल, इतना घूरता मैं
::एकटक उसको रहा हूँ,
:::पर कहाँ स्रगी है वह, ज्योति है वह
:::जो कि अपने साथ लाएगा?
:::रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा-
:::द्वार कोई खटखटाएगा!
और बारंबार मैं बलि-
हार उसपर जो न आया,
औ' न आने का समय-दिन
ही कभी जिसने बताया,
::और आधी ज़िदगी भी
::कट गई जिसको परखते,
:::किंतु उठ पाता नहीं विश्वास मन से-
:::वह कभी चुपचाप आएगा।
:::रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा-
:::द्वार कोई खटखटाएगा!