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रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
- रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा-
- द्वार कोई खटखटाएगा!
दिवस का अब मुझ पर नहीं अब
कर्ज़ बाकी रह गया है,
जगत के प्रति भी न कोई
फर्ज़ बाक़ी रह गया है,
- जा चुका जाना जहाँ था,
- आ चुके आना जिन्हें था,
- इस उदासी के अँधेरे में बता, मन,
- कौन आकर मुसकराएगा?
- रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा-
- द्वार कोई खटखटाएगा!
'वह की जो अंदर स्वयं ही
आ सकेगा खोल ताला,
वह, भरेगा हास जिसका
दूर कानों में उजला,
- वह कि जो इस ज़िन्दगी की
- चीख़ और पुकार को भी
- एक रसमय रागिनी का रूप दे दे
- एक ऐसा गीत गाएगा।'
- रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा-
- द्वार कोई खटखटाएगा!
मौन पर मैं ध्यान इतना
दे चुका हूँ बोलता-सा
पुतलियाँ दो खोलता-सा,
- लाल, इतना घूरता मैं
- एकटक उसको रहा हूँ,
- पर कहाँ स्रगी है वह, ज्योति है वह
- जो कि अपने साथ लाएगा?
- रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा-
- द्वार कोई खटखटाएगा!
और बारंबार मैं बलि-
हार उसपर जो न आया,
औ' न आने का समय-दिन
ही कभी जिसने बताया,
- और आधी ज़िदगी भी
- कट गई जिसको परखते,
- किंतु उठ पाता नहीं विश्वास मन से-
- वह कभी चुपचाप आएगा।
- रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा-
- द्वार कोई खटखटाएगा!