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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुमार अनिल|संग्रह=और कब तक चुप रहें / कुमार अनिल}}{{KKCatGhazal‎}}‎<poemPoem>मैं बनाने चला हूँ वही आशियाँ
आ के जिसकी हिफाज़त करें बिजलियाँ
चुप रहेंगी भला कब तलक आँधियाँ
जुल्म ज़ुल्म जब हद से बाहर हुआ आदमी
आ गया सड़क पे भींच कर मुट्ठियाँ
बीज नफरत नफ़रत के मंचों से बोते हैं जोउनके पांवों पाँवों से अब खींच लो सीढियांसीढियाँ
पहने बैठे हैं महफ़िल में दस्ताने वो
खून ख़ून में तो नहीं भीगी हैं उँगलियाँ
कोई तिनका फकत फ़कत न समझ ले हमें
अस्ल में हम तो माचिस की हैं तीलियाँ
फूल जितने थे जाने कहाँ खो गए
सिर्फ काँटों भरी रह गयी गई डालियाँ
दिल के एवज 'अनिल' तुझको शीशा मिला
जिस्म के नाम पर रह गयीं गई हड्डियाँ</poem>
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