कैफियते-शे‘रे<ref>शे‘र कहने का नशा</ref> शबे-महताब<ref>चांदनी रात</ref> न आई
सहरा में घटाघोर पे, हम बादकशों <ref>शराबी</ref> कीकब आई कि बा-दीदा-ए-पुरआब <ref>भीगे नयन</ref> न आई
जो मुल्के-अदम <ref>परलोक</ref> से नहीं आया कोई हमदमक्या याद उसे सोहबते-अहबाब <ref>मित्र</ref> न आई
खा ही रहा हलका <ref>घेरा</ref> में दिले-जुल्फ के चक्करकिस रोज ये कश्ती सरे-गदराब <ref>भंवर के किनारे</ref> न आई
था हमको ख्याल आएगा वो ख्वाब में लेकिन