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|संग्रह=
}}
देख करके बौर वाली
आम की टहनी
तन गये घुटने कि जैसे
खुल गयी कुहनी।गई कुहनी ।
धूप बतियाती हवा से
रंग बतियाते
फूल-पत्तों के ठहाके
दूर तक जाते
छू गई चुटकी
हँसी की हो गई बोहनी ।
विद्या कसम खाते
जा रहे स्कूल बच्चे
शब्द खनकाते
इस तरह
सब रम गए हैं सुध नहीं अपनी ।
रंग में डूबीं
हाथ आयी आई ज़िन्दगी के
संग में डूबीं
कल उतरने जा रही है खेत में कटनी।</poem>