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<poem>
ज़ाहिदो <ref>साधु, मुनि</ref> रौज़ए रिज़्वाँ <ref>स्वर्ग की वाटिका</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह ।आशिक़ो <ref>प्रेमी</ref> कूचए जानाँ <ref>प्रेमिका की गली</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह ।
जिसकी आँखों ने किया बज़्मे <ref>दुनिया की महफ़िल</ref> दो आलम को ख़राब ।कोई उस फ़ितनए दौराँ <ref>ज़माने का उपद्रवी</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह ।।
यारो देखो जो कहीं उस गुले खन्दाँ <ref>फूल की मुस्कान</ref> का ज़माल <ref>्सौन्दर्य, ख़ूबसूरती</ref> ।तो मेरे दीदए गिरयाँ <ref>बहुमूल्य आँखें</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह ।।
हैं जो वह कुश्तए शमशीर निगाहे क़ातिल ।