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इश्क़ अल्लाह-2 / नज़ीर अकबराबादी

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ज़ाहिदो<ref>साधु, मुनि</ref> रौज़ए रिज़्वाँ<ref>स्वर्ग की वाटिका</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह ।
आशिक़ो<ref>प्रेमी</ref> कूचए जानाँ<ref>प्रेमिका की गली</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह ।

जिसकी आँखों ने किया बज़्मे<ref>दुनिया की महफ़िल</ref> दो आलम को ख़राब ।
कोई उस फ़ितनए दौराँ<ref>ज़माने का उपद्रवी</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह ।।

यारो देखो जो कहीं उस गुले खन्दाँ<ref>फूल की मुस्कान</ref> का ज़माल<ref>सौन्दर्य, ख़ूबसूरती</ref> ।
तो मेरे दीदए गिरयाँ<ref>बहुमूल्य आँखें</ref> से कहो इश्क़ अल्लाह ।।

हैं जो वह कुश्तए शमशीर निगाहे क़ातिल ।
जाके उस गंजे शहीदाँ से कहो इश्क़ अल्लाह ।।

आह के साथ मेरे सीने से निकले है धुआँ ।
ऐ बुताँ मुझ दिलबर जाँ से कहो इश्क़ अल्लाह ।।

      याद में उसके रुख़ों ज़ुल्फ़ की हर आन ’नज़ीर’
      रोज़ो शब सुंबुलो रेहाँ से कहो इश्क़ अल्लाह ।।

शब्दार्थ
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