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संभलो दर्शको / हेमन्त शेष
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|संग्रह=अशुद्ध सारंग / हेमन्त शेष
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संभलो दर्शको
ऊब की मक्खी को
अपनी उम्मीद की पोशाक पर बैठने न दो
सम्भव है नींद खुलने पर इस बार
किसी बदली हुई दुनिया में जागें हम
जागने से बड़ी है इस बार
पोशाक
संभलते दर्शको
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अनिल जनविजय
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