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उस दिन तुम नाराज़ थीं मुझसे / अनिल जनविजय
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|संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय
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उस दिन तुम
नाराज़ थीं मुझसे बेहद
मैंने तुम्हारे साथ
एक गुस्ताख़ी जो की थी
बन्द कर ख़ुद को
एक कोठरी में तुमने
मुझको उस बेअदबी की
सज़ा सी दी थी
बहनें तुम्हारी और भाई
साथ थे मेरे
हम हँस मचल रहे थे
उस कोठरी को घेरे
पराँठे बना रहे थे
और खा रहे थे हम
इस तरह तुम्हें प्यार से
चिढ़ा रहे थे हम
तुम भूखी जो चली गीं थीं
कालेज उस सवेरे
(1996)
</poem>
अनिल जनविजय
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