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Kavita Kosh से
रात भर दीद-ए नम्नाक में लहराते रहे
साँस की तरह से आप आते रहे, जाते रहे ।
जो छू लेता मैं उसको, वो नहा जाता पसीने में ।
ख़ुदा भी मुस्कुरा देता था जब हम प्यार करते थे ।
क्या मैं इस रज़्म का ख़ामूश तमाशाई बनूँ
क्या मैं जन्नत को जहन्नुम के हवाले कर दूँ ।
हयात ले के चलो, कायनात ले के चलो-
चलो तो सारे ज़माने को साथ ले के चलो ।
ये जंग है जंग-ए आज़ादी ।
इक नई दुनिया, नया आदम बनाया जाएगा ।
सुर्ख़ परचम और ऊँचा हो, बग़ावत ज़िन्दाबाद ।
हुजूम-ए- बादाँ ओ गुल में हुजूम-ए-याराँ में
किसी निगाह ने झुक कर मेरे सलाम लिए ।
तोफ़-ए बर्ग-ए गुल व बाद-ए बहाराँ लेकर
क़ाफ़िले इश्क़ के निकले हैं बयाबानों से ।
कमान-ए अबरू-ए खूबाँ का बाँकपन है ग़ज़ल
तमाम रात ग़ज़ल गाएँ दीदे-यार करें ।