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{{KKRachna
|रचनाकार=मयंक अवस्थी
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सादगी पहचान जिसकी ख़ामुशी आवाज़ है
सोचिये उस आइने से क्यों कोई नाराज़ है

बेसबब सायों को अपने लम्बे क़द पे नाज़ है
ख़ाक में मिल जायेंगे ये शाम का आग़ाज़ है

यूँ हवा लहरों पे कुछ तह्रीर करती है मगर
झूम कर बहत है दरिया का यही अन्दाज़ है

देख कर शाहीं को पिंजरे में पतिंगा कुछ कहे
जानता वो भी है किसमे कुव्वते-परवाज़ है

क्यो मुगन्नी के लिये बैचैन है तू इस क़दर
ऐ दिले नादाँ कि तू तो इक शिकस्ता साज़ है

ये ज़ुबाँ और ये नज़र उस पर बराहना ख्वाहिशें
दाश्ताओं सी तेरी सीरत तेरा अन्दाज़ है
</poem>
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