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{{KKRachna
|रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
|संग्रह=जीतू / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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'''स्वर्ग रचनाकविता का एक अंश ही उपलब्ध है । शेषांश आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेज दें''' (नवीन जीवन दर्शन) म्ुाझको मुझको यह विष पी -पी कर अमृत करना ही होगा। होगा ।
इसी नरक को शुचि कर
मुझको, स्वर्ग विरचना ही होगा
भूली भटकी हुयी हुई
नदी को भी सागर के पद पर जाकर
अपना सारा जीवन
उसे निकल बाहर ज्वाला में
पिघल चमकना ही होगा
मुझको यह विष पी -पी कर
अमृत करना ही होगा
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