भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वर्ग रचना / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
Kavita Kosh से
कविता का एक अंश ही उपलब्ध है । शेषांश आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेज दें
मुझको यह विष पी-पी कर
अमृत करना ही होगा ।
इसी नरक को शुचि कर
मुझको, स्वर्ग विरचना ही होगा
भूली भटकी हुई
नदी को भी सागर के पद पर जाकर
अपना सारा जीवन
अर्पित करना ही होगा
मेरे उर का सोना
जो है दबा हुआ मिट्टी में
उसे निकल बाहर ज्वाला में
पिघल चमकना ही होगा
मुझको यह विष पी-पी कर
अमृत करना ही होगा