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{{KKRachna
|रचनाकार=ग्वाल
}}{{KKAnthologyGarmi}}
[[Category:पद]]
<poem>ग्रीषम की पीर के विदीर के सुनो ये साज,
तरु-गिरि तीर के, सुछाया में गंभीर के ।
सीतल समीर के सुगंधी गौन धीर के जे,
सीर के करैया प्यासे पूरित पटीर के ॥
ग्वाल कवि गोरी दृग-तीर के, तुसीर के सु,
मोद मिलें जैसें अकसीर के, खमीर के ।
आबखोरे छीर के, जमाये बर्फ चीर के,
सु बंगले उसीर के, भिजे गुलाब-नीर के ॥
</poem>
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<poem>ग्रीषम की पीर के विदीर के सुनो ये साज,
तरु-गिरि तीर के, सुछाया में गंभीर के ।
सीतल समीर के सुगंधी गौन धीर के जे,
सीर के करैया प्यासे पूरित पटीर के ॥
ग्वाल कवि गोरी दृग-तीर के, तुसीर के सु,
मोद मिलें जैसें अकसीर के, खमीर के ।
आबखोरे छीर के, जमाये बर्फ चीर के,
सु बंगले उसीर के, भिजे गुलाब-नीर के ॥
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