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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=कल सुबह होने के पहले / श…
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{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
दर्पणों के बीच
अपनों को ढूँढ़ता,
प्रतिबिम्बों से बातें करता;
मैं किसी अजनबी शहर में आ गया हूँ !
:जहाँ
:नल पर नहाती सुबहें
:फाइलों पर झुकी दोपहरें
:और
:खाँसती बीमार रातें
:एक पल भी चैन से जीने नहीं देतीं !
जाने कहाँ छूट गई !
छूट गई-
:वह धूपवाली एक टुकड़ा बदली : माँ !
:ईरानी गुलाब की शाख : पत्नी !
:धानी पत्तियों वाली ईख : बहन !
:नीम का नौधा पेड़ : भाई !
:और
:रोशनी-भरा पूरा का पूरा आसमान : पिता !
दर्पणों...की...इस...भीड़...में...सब...के...सब...खो...गए !
प्रतिबिम्बों !
अरे ओ प्रतिबिम्बों !!
क्या तुम में ऐसा कोई नहीं जो इन सब की याद भुला सके !
कुछ नहीं सिर्फ ’दोस्त’ बनकर
मेरे साथ
रह सके! जी सके!! गा सके!!!
कोई तो आगे बढ़कर जवाब देता !
क्या सचमुच तुम में ऐसा कोई नहीं !
सचमुच कोई नहीं......!
सचमुच कोई नहीं...........!
(1963)
</poem>
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|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
}}
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<poem>
दर्पणों के बीच
अपनों को ढूँढ़ता,
प्रतिबिम्बों से बातें करता;
मैं किसी अजनबी शहर में आ गया हूँ !
:जहाँ
:नल पर नहाती सुबहें
:फाइलों पर झुकी दोपहरें
:और
:खाँसती बीमार रातें
:एक पल भी चैन से जीने नहीं देतीं !
जाने कहाँ छूट गई !
छूट गई-
:वह धूपवाली एक टुकड़ा बदली : माँ !
:ईरानी गुलाब की शाख : पत्नी !
:धानी पत्तियों वाली ईख : बहन !
:नीम का नौधा पेड़ : भाई !
:और
:रोशनी-भरा पूरा का पूरा आसमान : पिता !
दर्पणों...की...इस...भीड़...में...सब...के...सब...खो...गए !
प्रतिबिम्बों !
अरे ओ प्रतिबिम्बों !!
क्या तुम में ऐसा कोई नहीं जो इन सब की याद भुला सके !
कुछ नहीं सिर्फ ’दोस्त’ बनकर
मेरे साथ
रह सके! जी सके!! गा सके!!!
कोई तो आगे बढ़कर जवाब देता !
क्या सचमुच तुम में ऐसा कोई नहीं !
सचमुच कोई नहीं......!
सचमुच कोई नहीं...........!
(1963)
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