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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर
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स्तब्ध, गीली, शुभ्र धुँधली रात है,<br>
बह रहा शीतल शिशिर का वात है !<br><BR>